इज़ाडोरा बीसवीं सदी की महान नृत्यांगना थीं, साथ ही एक अत्यंत विवादस्पद और उन्मुक्त स्त्री भी. उनके नृत्य में इतनी पवित्रता और सम्मोहन था कि उन्हें ‘भोर की नर्तकी’ कहा जाता था. वे एक ऐसी स्त्री थीं जिसने अपने समय के बरक्स दस बीस साल नहीं वरन, सौ साल आगे जीते हुए प्रेम व जीवन के अद्भुत प्रयोग किये. इज़ाडोरा ने नृत्य के भी तमाम प्रयोग किये. वे सभी प्रयोग महानतम थे, इतने कि उन्होंने आधुनिक पाश्चात्य नृत्य को एक नया अर्थ, नया स्वरुप और नया आयाम दे डाला. लेकिन जो प्रयोग उन्होंने जीवन और प्रेम के क्षेत्र में किए, वे सिर्फ कलाकारों के लिए ही नहीं वरन विचारकों, दार्शनिकों, समाजशास्त्रियों, मनोवैज्ञानिकों, और वैयक्तिक स्वतंत्रता व नारी मुक्ति आंदलनों से जुड़े सभी बौद्धिकों के लिए बहुत ज़्यादा अहमियत रखते हैं. उनकी दुनिया कला व प्रेम की एक अनूठी भावमय दुनिया थी.
इज़ाडोरा डंकन
इज़ाडोरा हमें फिर तुम्हारी प्रतीक्षा है
इस शापित युग में, हमें प्रतीक्षा है मानवता के नृत्य की
जिसमें झलकता हो सृष्टि का समन्वय
दुनिया के तमाम अश्लील और कामुक नृत्य के बीच
तुम्हारा अलौकिक नृत्य
जैसे सजदा है, बंदगी है
इलहाम की एक राह है
तुम्हारे पवित्र नृत्य का जादू
शायद उबार ले हमें
वासनाओं के भंवर से
हमारे बंजर मन में फिर उग सकें
संवेदनाओं के बिरवे
हम अपने नृत्य की आत्मा को खोजते
भटकते लोग हैं
हमारा नृत्य अब नहीं रह गया
हमारी संस्कृति का आइना
धीर धीरे उसमें से रिस चुका है
प्रकृति के लिए सहज नेह
हम खुद ही खौफ़ज़दा हैं अपने नृत्य से
हमारा नृत्य विध्वंस का नृत्य है
खून में नहाए हैं हमारे सुर
और स्वार्थ में लिपटी है लय
यूँ तो बेताल बेसुरा है हमारा जीवन
लेकिन ठोंक सकते हैं ताल
अलगाव के हर मसाइल पर
हर किसी के पास है अपना राग
और पंचम स्वर में हम लड़ते हैं
अपनी सब लड़ाइयाँ
महज़ चंद शब्दों में समझ लो हमें
कि हम मानवता का लकवाग्रस्त अंग हैं
तुमने जर्मनी, रूस, फ्रांस के युद्ध
जिए हैं, देखें हैं
पीड़ा भरे मन से तुम गाया करती थीं ‘मार्शिएज़’
आज हमें भी ज़रूरत है कि कोई ‘जन-गण-मन’
फूंक दे हमारे कानों में
शायद हम खड़े हैं एक क्रांति की दहलीज़ पर
हमारी क्रान्ति हमारे ही ख़िलाफ़ है
हमारी ओढ़ी हुई आधुनिकता
और उधार की बौद्धिकता के खिलाफ
एक अभूतपूर्व क्रान्ति !!
एकबार फिर धरती पर आओ इज़ाडोरा
और अपनी उसी मुद्रा में हाथ उठाओ
जिसमें आकाश का आलिंगन करती
एक देवी सी लगती थी तुम
हमारे चेहरों में तुम देख सकोगी
अपनी द्रेद्रे को
और हमारे बच्चों में दिखेगी तुम्हे
पैट्रिक की सी मासूमियत
तुम देखोगी कि हमारे बीच ही
जीवित हैं पैट्रिक और द्रेद्रे
तुम्हारी गोद में खेलने को उमगते
नील के तट पर
नारंगी सूर्यास्त में डूबते हुए
तुम गुज़ारना अपनी शामें
और सारी रात खोजना नृत्य के नए आयाम
हमारे इतिहास भूगोल खंगालकर
ईज़ाद करना एक नृत्य
जो हमारी सभ्यता की ही नहीं
हमारे दिल की बात कहता हो
बोध गया जाकर
वर्नोन, मिरोस्की और एल सहित
अपने सारे प्रेमियों का कर देना पिंडदान
और मुक्त कर लेना खुद को
अतीत की प्रेतबाधा से
बेचैन रूहों से महफूज़ रखना खुद को
और इसबार जीना अपने लिए
अपनी कला के लिए
अपने अंजुरी भर सपनों के लिए.
एक ही जीवन में इतनी ठोकरें खाकर भी
क्या तुमने नहीं सीखा
कि प्रेम एक छलावा है
और बौद्धिक प्रेम एक निर्मम झूठ!
तुमने जो जागरण शुरू किया था
वो अब भी नहीं पहुंचा है जन जन के बीच
कि अब भी माँ बनने की पहली शर्त होती है सात फेरे
कि अब भी अकेली स्त्री सुलभ ही मानी जाती है
कि अब भी परोपकार का ठेका पुरुषों की संपत्ति है
अब भी प्रेमी, अपनी प्रेमिकाओं को समझाते हैं
कि रहो घर पर, और पैदा करो बच्चे
मुझे सफल देखकर खुश हो और पा लो मोक्ष को
इज़ाडोरा तब से अब के बीच
बहुत सारी चीज़ें वैसी ही रह गयी हैं
बदला है तो सिर्फ ये कि
बस हम थोड़े और स्वार्थी हो गए हैं
अब हम कला का इस्तेमाल
किसी सामाजिक जागरण या भलाई के लिए नहीं करते
अब हम नहीं खोलते मुफ़्त स्कूल
अब हम सामान देकर वसूलते हैं कीमत
अब हमारा धर्म मानवता नहीं रहा
अब हमारा धर्म व्यापार है इज़ाडोरा
सभ्यता का ककहरा भूले हुए हम
तुम्हारी कला के भिक्षुक हैं
तुम अमेरिका का कीमती गहना हो
आज की महाशक्ति है तुम्हारा अमरीका
और हम उसकी कठपुतली!
हम अपनी दासता में क़ैद हैं
हमें आध्यात्म की वो ज्योति दिखाओ इज़ाडोरा
जो तुम्हारे भीतर प्रस्फुटित हुई थी
और जिसने किसी चुम्बकीय शक्ति की तरह
तुम्हे बुला लिया था एथेंस.
आओ कि अब भी थियेटर में
‘ट्रैजिक कोरस’ की वो कला नहीं लौटी है
जिसके सपने तुम देखा करती थीं.
मानवता और प्रकृति के
महामिलन पर होने वाले महानृत्य की
आकांक्षा में तुमने होम कर दिया
अपना सारा जीवन..
तुम्हारा जीवन समर्पण पर लिखा एक अध्याय है
इस दुनिया को छोड़ते हुए भी
तुम अपनी अमूल्य थाती दे गयीं थीं दुनिया को
तुम्हारी पीड़ा की डायरी
स्त्री की संवेदना के
अनेक आयामों को अपनी
छुअन से सहलाती एक जीवनी है
अदम्य साहस और जिजीविषा का एक आख्यान
आने वाली न जानें
कितनी सदियों तक
आधी आबादी के लिए
एक अखंड जोत
प्रेम के विराट स्वरुप और उसके
बेहद जटिल मनोविज्ञान का
भुगता हुआ यथार्थ
हम तुम्हारे कर्ज़दार हैं इज़ाडोरा
हमें एक मौका दो
इसा ऋण का भार कुछ कम हो सके
मानवता पर
कि फिर लौट आओ, इसलिए भी
कि हम इसबार तुम्हें वो सम्मान दें
जिसकी हक़दार रहीं तुम
कि इसबार हम तुम्हारे रूहानी नृत्य को
आत्मसात कर सकें इबादत की तरह
एक बार फिर ज़िन्दा कर दो वह मृत संस्कृति
और मुखाग्नि दे दो हमारे कुसंस्कारों को
इज़ाडोरा, ईजाद करो वह नृत्य
जो समूची मानव जाति को
पिरो दे एक सूत्र में
और हम भीज जाएँ
प्रेम और उदात्तता की बारिश में!