Apr 13, 2019

रूह का राग


न जाने किस शै की तलाश में भटकते, अपने ठीहे से बहुत दूर आ जाने पर एहसास होना कि अब तो याद नहीं कि मुझे तलाश किसकी थी। कुछ धुँधला सा उभरता है याद में कि बस सबसे भाग जाने को जी चाहता था। और जी ने जो चाहा है वो आसान कब हुआ है। भागते हुए भी हर बार वहीं पहुँचना, किसी परिधि पर घूमने जैसा, घड़ी की सूई की मानिंद। कोई विराम नहीं। अब कहीं भीतर से आवाज़ आती है कि वो सबकुछ अब भी वैसे ही ख़यालों में घुमड़ता है, जिससे भागना चाहा था। बार-बार टटोलती हूँ कि वो क्या है जो मेरे साथ ही चल रहा है।
भीतर का कोई शोर, घबराहट, कोई असुरक्षा, बेनाम सी बेचैनी... कुछ तो है, पर किसी ऐसे रूप में है कि पहचान में नहीं आता। या शायद उसे जान लेने का भी कोई वक़्त मुअय्यन होगा और तब तक यह अजीब सी कशमकश तारी रहेगी। ऐसे इंतज़ार हमेशा मुश्किल होते हैं, जिनकी कोई मियाद नहीं होती...

पर ज़िंदगी है, तो इंतज़ार है, इंतज़ार है, तो उम्मीद है, उम्मीद है तो हम हैं
ये बात और है कि, पूरे से ज़रा सा कम हैं...






Photo: Jenessa Wait
Hear My Heart




No comments :

Post a Comment